मऊ-जैसे महात्मा गांधी ने गरीबों की दुर्दशा देख सादगी धारण कर ली थी। ठीक उसी प्रकार झारखंड के आदिवासियों को बदहाली से उबारने के लिए जीवन समर्पित करने वाले पद्मश्री अशोक भगत उदाहरण हैं। उन्होंने लगभग 33 वर्ष पहले प्रण लिया था कि जब तक आदिवासियों के तन पर कपड़ा नहीं होगा, जब तक उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार उपलब्ध नहीं होगा, जब तक वनवासी समाज की मुख्यधारा से नहीं जुड़ जाएंगे, वे वस्त्र नहीं पहनेंगे। सिर्फ धोती और गमछा धारण करेंगे।जनजातीय समाज के समेकित विकास के लिए प्रतिबद्ध श्री भगत ने आदिवासियों के बीच काम करने के लिए वेश ही नहीं नाम तक बदल डाला। किशुनदासपुर निवासी अशोक राय जब आरएसएस के वरिष्ठ अधिकारियों की प्रेरणा से झारखंड के गुमला जिले के बिशुनपुर (उस समय के बिहार) में अपने तीन आइआइटीयन साथी डा. महेश शर्मा, रजनीश अरोड़ा और स्व. राकेश पोपली के साथ काम करने आए तो कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि जतरा ताना भगत की इस धरती पर यदि काम करना है तो उन्हीं के अनुसार रहना और जीना पड़ेगा। उन्होंने 1983 में अपना नाम बदल कर अशोक राय से अशोक भगत रख लिया, जो आज बाबा के रूप में प्रसिद्ध हैं आज वह हम सब के बीच जनपद मऊ में रहेंगे इसकी जानकारी आशुतोष राय भाजपा युवा मोर्चा जिला मिडिया प्रभारी ने दिया है ।