नीरस चुनाव में उत्साहित नहीं हैं मतदाता!

लखनऊ। अमित शाह और सुनील बंसल का अहंकार मोदी जी को परेशानी में डाल दिया है। प्रत्याशी चयन में निर्विवाद रूप से इन्हीं दोनों नेताओं की चली है। और इन दोनों ने जीत के अति अहंकार और भाजपा को मतदाताओं की मजबूरी समझकर उन प्रत्याशियों को फिर से उतार दिया, जिनका अपने संसदीय क्षेत्र में जबर्दस्त विरोध था। मोदी को लेकर अब राष्ट्रवादी मतदाताओं में चार्म नहीं बचा है, लेकिन मोदी से नाराजगी भी नहीं है। उनका गुस्सा काहिल प्रत्याशियों को फिर से रिपीट कर देने से है। इसलिये वह मतदान करने नहीं निकल रहे हैं। जो जोश और जुनून 2014 और 2019 में था, वह कहीं नजर नहीं आ रहा है।
उत्तर प्रदेश की बात करें तो नोएडा में डा.महेश शर्मा, मुजफ्फनगर में संजीव बालियान, कैराना में प्रदीप चौधरी, बुलंदशहर में भोला सिंह, अलीगढ़ में सतीश गौतम, बस्ती में हरीश द्विवेदी, बलिया में वीरेंद्र सिंह मस्त, चंदौली में डा.महेंद्र नाथ पांडेय, कौशांबी में विनोद सोनकर, भदोही में रमेश बिंद का जबर्दस्त विरोध था। इनमें बलिया और भदोही का टिकट तो भाजपा ने बदला, लेकिन अन्य सांसदों को रिपीट कर दिया, जिसका असर है कि भाजपा का वोटर घर से नहीं निकल रहा है। जिन सीटों पर हार जीत का मार्जिन ज्यादा रहा है, वहां तो भाजपा सीट निकाल सकती है, लेकिन पचास हजार तक जीत वाली सीटें फंस गई हैं।
दस साल तक मोदीजी का काम देख चुकी जनता में अब उनको लेकर उत्साह नहीं बचा है, लेकिन विपक्ष की हालत देखकर वह बदलाव के मूड में नहीं है, इसका कुछ फायदा भाजपा को मिल रहा है। यूपी में भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह प्रत्याशी बनेंगे। प्रत्याशियों के खिलाफ नाराजगी का असर है कि पहले चरण से भी कम मतदाता दूसरे चरण में बाहर निकले। यह ट्रेंड आगे भी बना रहेगा, क्योंकि इस चुनाव में लहर नहीं है, और बहुत ही नीरस चुनाव होता जा रहा है। भाजपा प्रत्याशी से बेहद नाराज मतदाता विपक्ष के मजबूत उम्मीदवार या नोटा का प्रयोग कर रहा है, वहीं कम नाराज मतदाता घर पर बैठ रहा है। उपेक्षित कार्यकर्ता भी शिथिल है।
पहले चरण में भाजपा को अंदेशा था कि मोदी के नाम पर मतदाता फिर से भाजपा के सपोर्ट में आयेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चुनाव हिंदू और मुस्लिम नहीं हो पाया, जबकि भाजपा का आईटी सेल हिंदू-मुस्लिम का माहौल बनाता रहा, लेकिन भाजपा के तमाम वोटर आईटी सेल के सारे नौटंकी को पीछे छोड़कर सपा एवं कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान किया। रणनीति फेल होने का आभास मोदीजी को भी हो गया है, इसलिये वे दूसरे चरण के प्रचार से पहले चुनाव को हिंदू और मुसलमान बनाकर ध्रुवीकरण करने में जुट गये हैं। परंतु इस कवायद का बहुत ज्यादा असर होता नहीं दिख रहा है।
चार सौ पार का लक्ष्य लेकर चल ही भाजपा को इस बार तीन सौ पार करने में भी पसीने छूट जायेंगे, क्योंकि वोट प्रतिशत जितना कम होता जायेगा, उतना ही नुकसान भाजपा होगा। ऐसा नहीं है कि जनता मोदी या भाजपा से इतनी नाराज थी, लेकिन अमित शाह और सुनील बंसल की जोड़ी ने टिकट वितरण में मनमानी करके मोदीजी का पूरा खेल मुकिश्ल में डाल दिया है। ऊपर से कार्यकर्ताओं की उपेक्षा। ऐसा केवल यूपी में नहीं हुआ है। कई अन्य राज्यों में हुआ है, जिसका असर भाजपा के प्रदर्शन पर भी दिखेगा। विपक्ष के नकारापन से मोदीजी की सरकार तो बन जायेगी, लेकिन मजबूत मोदी सरकार की जगह मजबूर मोदी सरकार देखने को मिल सकती है।
(लेखक अनिल सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं। अनिल सिंह के फेसबुक वॉल से साभार )