नई दिल्ली, प्रेट्र। हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में हाल के दिनों में बादल फटने की कई घटनाएं सामने आई हैं। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में तो अमरनाथ गुफा के पास बुधवार को ही बादल फटने की घटना हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि बादल फटना एक स्थानीय घटना है, जो ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में होती है। इसके बारे में भविष्यवाणी करना मुश्किल है।
आसमान से अचानक भारी मात्रा में पानी गिरने से जान-माल का भारी नुकसान
अगर किसी एक जगह पर एक घंटे के भीतर 10 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश होती है तो इसे बादल फटने की घटना के रूप में लिया जाता है। आसमान से अचानक भारी मात्रा में पानी गिरने से जान-माल का भारी नुकसान होता है। बुधवार को भी अमरनाथ गुफा के पास बादल फटने से स्थानीय नदी में अचानक जल स्तर बढ़ गया।
भौगोलिक कारकों के कारण से होता है बादलों का निर्माण
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कहा कि बादल का फटना एक बहुत ही छोटे स्तर की घटना और ज्यादातर हिमालयी या पश्चिमी किनारों के पहाड़ी इलाकों में होती हैं। उन्होंने कहा कि जब गर्म मानसूनी हवाएं ठंडी हवाओं के साथ परस्पर क्रिया करती हैं तो इससे विशाल बादलों का निर्माण होता है, जो भौगोलिक कारकों के कारण भी होता है।
13-14 किलोमीटर तक ऊंचे होते हैं बादल
मौसम के बारे में जानकारी देने वाली निजी एजेंसी स्काईमेट वेदर के वाइस प्रेसिडेंट (मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन) महेश पलावट ने कहा कि इस प्रकार के बादलों को तूफानी बादल कहा जाता है, जिनकी ऊंचाई 13-14 किलोमीटर तक होती है। अगर ये बादल किसी एक क्षेत्र विशेष में फंस जाते हैं या उन्हें तितर-वितर करने के लिए हवा नहीं बहती है तो ऐसे बादलों में जमा पानी अचानक नीचे गिरता है।
मुक्तेश्वर में डाप्लर रडार का संचालन
ज्ञात हो कि मौसम की पल-पल की निगरानी के लिए उत्तराखंड के मुक्तेश्वर में करीब छह महीने पहले डाप्लर रडार का संचालन शुरू किया गया था। यह रडार 360 डिग्री के दायरे में बादल फटने, भीषण बारिश व आने वाले तूफान का पता लगा सकता है। इसका उद्घाटन तत्कालीन केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डा. हर्षवर्धन व तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने डॉप्लर रडार का वर्चुअल शुभारंभ किया था। सौ मीटर की हवाई परिधि में मौसमी आपदा को लेकर यह रडार बेहद कारगर है।