घोसी मऊ। घोसी की राजनीति की अपनी अलग ही बानगी है, यहां की सियासत की तासीर को जितना समझने में नेता कामयाब रहे, उससे कम जनता भी नहीं रही।
तभी तो आजादी के बाद विधायकी के जो आंकड़े नजर आते हैं उसमें घोसी विधानसभा में तीन बार लगातार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से झारखंडे राय अप्रैल 1957 से अप्रैल 1968 तक विधायक रहे। फरवरी 1969 में पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से रामबिलास पाण्डेय ने यह सीट भाकपा से जीती। लेकिन फरवरी 1974 में पुनः भाकपा से ज़फ़र आजमी कांग्रेस से सीट अपनी झोली में करने में सफल रहे। जून 1977 में जनता पार्टी से विक्रमा राय विधायक बने तो जून 1980 में केदार सिंह ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इंदिरा से जीत हासिल की।
उसके बाद 1985 में घोसी की राजनीति में आजमगढ़ (उस समय घोसी का जिला आजमगढ़ ही था) से लोकदल के सिंबल पर फागू चौहान विधायक बने।
10वीं विधानसभा के चुनाव के पूर्व ही सांसद कल्पनाथ राय ने आजमगढ़ से अलग कर मऊ को अलग जिला बनवा दिया था और 1989 में कांग्रेस ने सुभाष यादव पर दांव लगाया और कामयाब रही।
फागू चौहान ने घोसी की सियासत में ऐसी इंट्री मारी की पीछे हटने का नाम नहीं लिया। 1991 में फागू चौहान जनता दल के सिंबल पर चुनाव लड़े और विधायक बने। 1993 में बसपा ने पहली बार खाता खोला और अक्षैबर भारती विधायक बने। घोसी की सियासत में अपनी मजबूत पकड़ बना चुके फागू चौहान घोसी की राजनीति के वह स्तंभ बनते गए की वे घोसी की सियासत के सबसे बड़े मौसम विज्ञानी साबित हुए। जरूरत के हिसाब से दल बदले और जीत को प्राथमिकता दिया। हारे भी तो भागे नहीं सिर्फ और सिर्फ सीखा और बारीकियां समझी। 1996 व 2002 में भाजपा के सिंबल पर व 2007 में भाजपा से नाता तोड़, बसपा के हाथी से विधायक की हैट्रिक लगाने वाले झारखंडे राय के बाद दूसरे नेता बने। 2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी से सुधाकर सिंह विधायक बनने में कामयाब रहे तो फिर 2017 के चुनाव में फागू चौहान ने बसपा से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया और घोसी के विधायक बने। इसी बीच भाजपा के केंद्र सरकार को लगा कि फागू चौहान का जगह इससे योग्य होना चाहिए और वे श्री चौहान को 2019 में बिहार का राज्यपाल बना दी तथा फागू चौहान के बेटे रामविलाश चौहान को मधुबन सीट से विधायक बनाकर वह तोहफा दिया जो वह कभी सोचे नहीं होंगे। 2019 के उपचुनाव में भाजपा ने युवा चेहरे के रूप में विजय राजभर पर दांव लगाया और वे मामूली वोटो से सुधाकर सिंह से चुनाव जीतकर लखनऊ के सदन में जाने में कामयाब रहे हैं। 2022 के चुनाव में मधुबन से भाजपा विधायक रहे दारा सिंह चौहान ने भाजपा से इस्तीफा देकर सपा का दामन थाम लिया और घोसी से विधायक बने। लेकिन कुछ महीने के अंतराल में ही उन्हें सपा रास न आई, वे सपा से इस्तीफा देकर पुनः भाजपा में चले गए। 2023 के उपचुनाव में भाजपा ने अपने सिंबल दारा को मैदान में उतारा तो सपा ने स्थानीय नेता के रूप में पूर्व विधायक सुधाकर सिंह पर दावं लगाया, उधर मायावती ने प्रत्याशी न उतार घोसी की सियासत में ऐसा घमासान मचा दिया, कि नेताओं के सिर्फ पसीने छूट रहे हैं। भाजपा ने घोसी को जीतने के लिए अपना पूरा कुनबा उतार दिया तो सपा कम चल कर भी बहुत दूर की चाल चल रही।
घोसी का उप चुनाव सियासत में ऐसी गर्माहट लाई है कि जो पूरे देश की सियासत में चर्चा का बाजार गर्म है। ऐसे में घोसी में अब तक सिर्फ दो ही नेता लगातार विधायक बनने में कामयाब रहे जिसमें तीन बार लगातार झारखंडे राय तो तीन बार लगातार फागू चौहान। ऐसे में अब यह देखना होगा की, घोसी की सियासत में दल-बदल वाले विधायक बनने में कामयाब होते रहे हैं। क्या दारा सिंह चौहान दल बदल कर विधायक बनने में कामयाब हो पाएंगे या फिर यह रिकार्ड झारखंडे राय और फागू चौहान के नाम ही रहेगा।
झारखंडे राय व फागू चौहान के अलावा कोई नही हो सका लगातार विधायक
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