स्टोरी/ प्रवीण राय
मऊ-घोसी उपचुनाव अपनी मध्यम गति से चल ही रहा था कि अचानक एक सिरफिरे ने ऐसा माहौल खड़ा किया कि पूरा राजनीतिक परिदृश्य ही बदल गया। बताते चलें कि जनपद मऊ के घोसी विधानसभा पर लंबे समय तक चौहान बिरादरी का कब्ज़ा रहा है। हांलांकि कांग्रेस और कम्युनिस्ट के जमाने में यह सीट भूमिहार विरादरी के नाम से जानी जाती थी लेकिन कल्पनाथ राय के निधन के बाद इस विरादरी का प्रतिनिधित्व कमजोर पड़ा और समय के साथ इस सीट पर वर्तमान राज्यपाल फागू चौहान ने अपना कब्जा जमा लिया और दलबदल को अपना धर्म मानकर लगातार न सिर्फ विधायक बनते रहे बल्कि उत्तर प्रदेश की सरकार में मंत्री पद पाते रहे।
आखिर दारा सिंह चौहान क्यों घोसी से लड़े चुनाव?
दारा सिंह चौहान घोसी लोकसभा चुनाव 2014 का हारने के बाद 2017 में मधुबन विधानसभा का चुनाव लड़कर जीते और उत्तर प्रदेश सरकार में वनमंत्री बने तथा 2022 के विधानसभा आम चुनाव में दारा सिंह चौहान ने घोसी सीट को सुरक्षित मानकर समाजवादी पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़े तथा विजयी रहे। दारा चौहान का फैसला उनके हित में तो अच्छा रहा लेकिन सरकार न बनने के कारण पार्टी बदलने की वजह से उनको सत्ता सुख नहीं मिल पा रहा था, जिसकी वजह से वह पुनः भाजपा के इर्द गिर्द मंडराने लगे और छः महीना पहले से ही यह कयास लगाया जा रहा था कि वह भाजपा में पुनः शामिल होने जा रहे हैं। तमाम मीडिया यह कयास लगा रही थी कि वह घोसी लोकसभा चुनाव लड़ेंगे लेकिन अपनी विधायकी से इस्तीफा देकर पुनः इस सीट से दुबारा भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना दारा सिंह चौहान के लिए एक बहुत बड़ा रिस्क का काम था।कारण उनकी जनता के प्रति एक बड़ी जबाबदेही थी। लेकिन इस चुनौती को स्वीकार करते हुए दारा सिंह चौहान मैदान में कूद पड़े,उनका कहना है कि पार्टी के शीर्ष नेताओं के कहने पर मैंने ऐसा किया।श्री चौहान ने बताया कि चुनाव जीतने के बाद भी आखिर कौन ऐसा होगा जो अपने पद से इस्तीफा देकर पुनः चुनाव लड़ना चाहेगा लेकिन शीर्ष नेतृत्व का यही फैसला था कि मैं इस्तीफा देकर पुनः इसी सीट से भाजपा के बैनर तले चुनाव लड़ूं।
सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह का ठीक चल रहा था माहौल
उपचुनाव की घोषणा हुई और चुनाव धीरे-धीरे अभी चल ही रहा था कि समाजवादी पार्टी के धुरंधर नेता माने जाने वाले सुधाकर सिंह को इस सीट पर टिकट मिल गया और वह ताली ठोंककर मैदान में उतर गए चुंकि सुधाकर सिंह लंबे समय तक घोसी विधानसभा की न सिर्फ राजनीति करते आ रहे हैं। बल्कि इस सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं और लगातार जनता के सुख-दुख में शामिल रहने का प्रयास भी करते हैं। जिसकी वजह से चुनाव की हवा सुधाकर सिंह के पक्ष में जाती दिख रही थी।
स्याही कांड ने बदल दिया चुनावी समीकरण
चुनाव की गतिशीलता जैसे-जैसे बढ़ रही थी इसी बीच चुनावी जनसंपर्क के दौरान एक समाजवादी सिरफिरे ने भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान के ऊपर काली स्याही फेंककर चुनावी राजनीति को ऐसा गर्म कर दिया कि यह आम चर्चा होने लगी कि यह भाजपा की ही साजिश है चुनाव भाजपा हार रही थी इसलिए विपक्षी समाजवादी को बदनाम करने के लिए केजरीवाल के स्टाइल में अपने ही ऊपर स्याही फेंकवाकर समाजवादी पार्टी को बदनाम किया जा रहा है। यह चर्चा पूरी विधानसभा एवं जनपद में आम हो गई। इस घटना को लेकर धीरे-धीरे दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप लगने शुरू हुए और जनता में धीरे-धीरे इसका असर दिखने लगा तथा मामला सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह के पक्ष में और चढ़ गया।
अखिलेश यादव के ट्वीट ने बढ़ाया कार्यकर्ताओं का मनोबल
समय की गंभीरता और नजाकत को समझते हुए सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष भैया जी भी कहां चुप बैठने वाले थे,उन्होंने भी लगे हाथ इस मामले पर अपनी ट्वीट ठोंक दी। अब क्या था? मऊ जनपद के समाजवादी बुद्धिजीवियों को जैसे ही अपने नेता का इंट्रेस्ट दिखा तुरंत एक बढ़िया स्क्रिप्ट लिख डाली और समाजवादी सिरफिरे को घोसी विधानसभा के थाना कोपागंज में पूरी प्लान के तहत यह कहते हुए सरेंडर कराया कि यह काम उसने एक भाजपा नेता के इशारे पर किया है। भाई पब्लिक अब इतनी मूर्ख नहीं रह गई है, लोग बाग यही कह रहे हैं कि यदि यह काम बीजेपी के इशारे पर हुआ होता और इसमें भाजपा की साजिश रहती तो इस अंदाज में थाने में सरेंडर नहीं किया जाता। इससे साफ जाहिर है कि स्क्रिप्ट लिखने वाले बुद्धिजीवी से थोड़ी सी चूक हो गई और स्याही कांड के बुद्धिजीवियों का दांव उल्टा पड़ गया।अब तक जो राजनीति का केंद्र सपा और भाजपा के प्रत्याशियों के बीच जनता आंकलन कर रही थी। अचानक से यह मामला पार्टीगत हो गया भाजपा को बैठे-बिठाए एक बड़ा मुद्दा मिल गया।और वह अपनी घिसी-पिटी राग अलापने लगी तथा समाजवादी पार्टी को गुंडा तथा बदमाशों की पार्टी बताकर जनता का ध्यान प्रत्याशी से हटाकर पार्टी की तरफ करने का न सिर्फ प्रयास कर रही है बल्कि सपा प्रत्याशी का जगह-जगह पुतला फूंककर चुनावी माहौल को भाजपा के पक्ष में करने का सफल प्रयास कर रही है।ऐसे में इस भारी डैमेज को समाजवादी पार्टी कैसे कंट्रोल कर पाती है? यह आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन इतना साफ दिखाई दे रहा है कि एक छोटी सी घटना (स्याही कांड) ने चुनाव का रंग बदलकर रख दिया है।