- दारा कभी न हारा
- देखनी होगी दारा सिंह की पहलवानी
- दांव पर दारा का राजनीतिक कैरियर
स्टोरी/ प्रवीण राय
मऊ। वैसे तो हम लोग दारा सिंह को फिल्मों में देखा करते थे बाद में टीवी सीरियल पर रामायण में हनुमान के रूप में देखा गया जिनकी वीरता की चर्चा जग जाहिर है। कुछ इसी तरह से राजनीति में दारा सिंह चौहान भी हैं जो अपने राजनीतिक कैरियर में कभी हार का मुंह नहीं देखते बताते चलें कि दारा सिंह चौहान मूलतः रहने वाले आजमगढ़ जिला मुख्यालय से सटे गलवारा गांव के हैं लेकिन उन्होंने अपना राजनीतिक कैरियर मऊ को चुना और सबसे पहले सन् 1996 से 2000 तक बहुजन समाज पार्टी ने इनको राज्यसभा सांसद बनाया। राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त होने से ठीक पहले यह समाजवादी पार्टी में चले गए और पुनः समाजवादी पार्टी ने इन्हें सन् 2000 से 2006 तक राज्यसभा सांसद बना दिया। भाग्य के धनी दारा सिंह चौहान 2006 से 2009 तक राजनीतिक कैरियर तलाश ही रहे थे और इस बीच अल्प समय के लिए कांग्रेस का भी दामन थाम लिया था। परंतु कांग्रेस में कुछ बात बनती न दिखी तो पुनः अपनी पुरानी पार्टी बहुजन समाज पार्टी में न सिर्फ शामिल हुए बल्कि 2009 में बहुजन समाज पार्टी के बैनर तले जनपद मऊ की घोसी लोकसभा से चुनाव लड़कर कर विजयश्री हासिल किए। चुंकि इस कार्यकाल में बहुजन समाज पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार थी इसलिए दारा सिंह चौहान का कद और पद दिनों दिन बढ़ता गया। धीरे-धीरे 2014 का लोकसभा चुनाव भी नजदीक आ गया और इस बार दारा सिंह चौहान अपना पैंतरा नहीं बदल पाए और मोदी लहर का शिकार हो गए तथा भाजपा प्रत्याशी हरिनारायण राजभर से 2014 लोकसभा का चुनाव हार गए परंतु नाम के अनुसार दारा कभी हार मानने वालों में से नहीं हैं। तत्काल इन्होंने राजनीतिक पैतरेबारी का अनुमान लगाते हुए देश में भाजपा की लहर का अंदाजा लगाया और विधानसभा 2017 से ठीक पहले वाराणसी प्रवास के दौरान अमित शाह से मुलाकात की और अपने राजनीतिक कैरियर को बताते हुए अपने को चौहान बिरादरी का नेता साबित कर दिया तथा मऊ की मधुबन विधानसभा से टिकट लेकर भाजपा के न सिर्फ विधायक बने बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार में पर्यावरण एवं वन मंत्री भी बनाए गए। अब अब धीरे-धीरे 2022 का चुनाव भी नजदीक आया और पूर्वांचल में जातिगत ध्रुवीकरण समाजवादी पार्टी की तरफ देखकर दारा सिंह चौहान ने पुनः अपना पाला बदलने का मन बना लिया सूत्र बताते हैं कि इस काम में उनके पुराने पार्टी के साथी रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने अगुवाई की और दारा सिंह चौहान को विधानसभा चुनाव 2017 के ठीक पहले मंत्री पद से इस्तीफा दिलवाकर सपा ज्वाइन करवा दिया।
विधानसभा 2017 में समाजवादी पार्टी से घोसी विधानसभा से दारा सिंह चौहान उम्मीदवार बने तथा जातिगत समीकरण के आधार पर चुनाव जीतकर वह समाजवादी पार्टी के विधायक तो जरूर बन गए लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार आने के बाद दारा सिंह चौहान को लगा कि यह उनकी राजनीतिक भूल है और धीरे-धीरे वह समाजवादी पार्टी से किनारा कसने लगे।
“इस संबंध में दारा सिंह चौहान का कहना है कि वह समाजवादी पार्टी ज्वाइन तो कर लिए थे लेकिन ऐसा महसूस हुआ कि यहां उनकी प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं है इसलिए क्षेत्र की जनता एवं अपने सलाहकारों के सुझाव पर उन्होंने धीरे-धीरे समाजवादी पार्टी से किनारा कस लिया और एक बड़ा कदम उठाते हुए अपनी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। “
बताते चलें कि दारा सिंह चौहान का पुनः भाजपा में आने की खबर लगभग 6 महीने से चल रही थी लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी विधायकी से इस्तीफा देकर और पुनः उसी सीट पर भाजपा का प्रत्याशी बनकर चुनाव लड़ने का फैसला करना दारा सिंह चौहान के राजनीतिक कैरियर का एक नया मोड़ होगा कारण कि यदि दारा सिंह चौहान इस सीट से दोबारा चुनाव जीतने में सफल रहते हैं तो निश्चित रूप से उनका राजनीतिक कद बढ़ाना तय है। वहीं यदि इस सीट पर वह चुनाव जीतने में सफल नहीं होंगे तो उनके राजनीतिक कैरियर पर प्रश्न चिह्न भी लग जाएगा।
इस प्रकार यदि देखा जाए तो राजनीतिक पहलवान और मौसम वैज्ञानिक दारा सिंह चौहान अपने राजनीतिक कैरियर को दांव पर लगा दिए हैं। वहीं दूसरी ओर घोसी उपचुनाव में उनके सामने समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता कहे जाने वाले सुधाकर सिंह मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में खड़े हैं।
सुधाकर सिंह के विषय में कहा जाता है कि वह चुनाव हारें या जीतें हमेशा जनता के बीच रहते हैं ऐसे में दारा सिंह चौहान का राजनीतिक कैरियर क्या होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। हालांकि उत्तर प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है जिसका फायदा निश्चित रूप से दारा सिंह चौहान को मिलेगा कारण कि पूरे उत्तर प्रदेश में मात्र एक ही सीट पर उपचुनाव हो रहा है। ऐसे में बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश भाजपा के बड़े नेता एवं कैबिनेट मंत्री तथा उपमुख्यमंत्री भी अपना डेरा इस सीट पर डालकर दारा सिंह चौहान को चुनाव जीताने का प्रयास करेंगे। इसका कारण यह भी है कि आगे ठीक सामने 2024 लोकसभा का चुनाव है ऐसे में भाजपा इस सीट को किसी भी कीमत पर हारना नहीं चाहेगी। क्योंकि इसी से 2024 लोकसभा चुनाव के लिए जनता के टेस्ट का भी पता चल जाएगा।