नर्सरुल्लाह अंसारी
कुशीनगर। मुहर्रम को शहादत और मातम का महीना कहा जाता है। एक तरफ इमामे हुसैन के शहीद होने पर गर्व का अनुभव कर उन्हें शहादत दी जाती है। तो वहीं धर्म के सच्चे अनुयायियों की हत्या किए जाने का मातम मनाया जाता है। तारीखे -ए- इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी। इस जंग में इंसानियत और जुर्म के खिलाफ लड़ाई हुई थी। इस जंग में पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे ईमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को शहीद कर दिया गया था। उस वक्त जब घोर अत्याचार का दौर आया, मक्का से दूर जब सीरिया के गवर्नर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया। उसके काम करने का तरीका बादशाहों जैसा था। जो उस समय इस्लाम के खिलाफ था। लेकिन इमाम हुसैन उसे खलीफा मानने से इनकार कर दिये थे। इससे नाराज यजीद ने अपने राज्यपाल वलीद को एक फरमान लिखा कि तुम हुसैन को बुलाकर मेरे आदेश का पालन करने को कहो और वो नहीं माने तो उसका सर काटकर मेरे सामने पेश करो। इस पर हुसैन ने कहा कि मैं एक व्यभिचारी, भ्रष्टाचारी और खुदा रसूल को न मानने वाले यजीद का आदेश नहीं मान सकता। इसके बाद इमाम हुसैन मक्का शरीफ पहुंचे ताकि हज पूरा कर सकें। वहीं यजीद ने अपने सैनिकों को इमाम हुसैन के कत्ल करने के लिए भेज दिया। इस बात का पता इमाम हुसैन को चल गया। लेकिन मक्का ऐसा पवित्र स्थान है। जहां किसी की भी हत्या करना हराम है। इसलिए वो खून खराबे से बचने के लिए हज के बजाय उसकी छोटी प्रथा उमरा करके परिवार सहित इराक चले गए। मोहर्रम महीना की दो तारीख 61 हिजरी को हुसैन अपने परिवार के साथ करबला में थे। नौ तारीख तक यजीद की सेना को सही रास्ते पर लाने के लिए जोर आजमाइस करते रहे। लेकिन वो नहीं माने। इसके बाद हुसैन ने कहा कि तुम मुझे एक रात की मोहलत दो। ताकि मैं अल्लाह की इबादत कर सकूं। उस रात को आसुर की रात कहा जाता है। अगले दिन जंग में हुसैन के 72 अनुयायी शहीद हो गए और उनकी शहादत की याद में दुनिया भर में मुसलमान मोहर्रम मनाते हैं। मुहर्रम जिसे एक शहादत का पर्व भी कहा जाता है। इसका महत्व इस्लामिक धर्म में बहुत अधिक माना जाता है। इस्लामिक कलेंडर के अनुसार यह साल का पहला महीना होता है। पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। मुहर्रम एक महीना है जिसमें इमाम हुसैन की याद में दस दिन शोक मनाया जाता है। ईसी महीने में पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब मुस्तफा ने पवित्र मक्का से पवित्र नगर मदीना में हिजरत किया था। मुहर्रम के दिन कुछ मुस्लिम श्रद्धालु रोजा रखते हैं और अल्लाह से खुशी और परिवार की सलामती की दुआ करते हैं।