रामकथा में वनगमन सुन श्रद्धालुओं के छलके आंसू। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सिर्फ कहने को धर्म, असली धर्म मान होता है: शांडिल्य जी महाराज

दोहरीघाट। ब्लॉक क्षेत्र अंतर्गत गोठा रामशाला मंदिर परिसर में सेवा सहयोग समिति के तत्वावधान में चल रहा नौ दिवसीय संगितमयी रामकथा के सातवें दिन कथावाचक पंडित विनोद मिश्रा द्वारा प्रभु श्री राम का अपनी भार्या सीता, भाई लखन के साथ जैसे ही वन गमन का प्रसंग शुरू किया चारों तरफ माहौल गमगीन हो उठा। जैसे ही पंडित विनोद मिश्र जी ने ‘मत जा हे मेरे राम अयोध्या छोड़कर वन मत जा’ संगीत का सुर बिखेरा श्रद्धालुओं की आंखों से आंसू छलक पड़े। मानो सच में लोगों के सामने वह दृश्य अवतरित हो रहा है। पूरा पांडाल एकदम से शांत हो गया और सिर्फ लोगों की आंख से आंसू बह रहे थे। मानस मर्मज्ञ देवरिया की पावन धरती से पधारे पंडित अखिलेश मणि शांडिल्य ने जब माता सीता का चरित्र बताया और बेटियों की प्रताड़ना बताया बंद करने का वचन दिलाया।समाज में बेटियां हर क्षेत्र में अपनी अहम भूमिका निभा रही हैं। फिर भी आज भी कई जगहों पर बेटियों को मार दिया जाता है। उन्होंने कहा कि बेटियां बड़े नसीब वालों के घर पैदा होती हैं। हर किसी की औकात नहीं होती बेटी पाल सके। अपनी कथा को आगे बढ़ाते हुए पंडित अखिलेश मणि शांडिल्य ने जब राम कथा के विभिन्न पात्रों का चरित्र एक-एक कर लोगो के बीच रखा। शांडिल्य जी ने बताया कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सिर्फ कहने को धर्म है। असली धर्म तो मान होता है। जहां मानवता नहीं वहा धर्म नहीं।

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