रतनपुरा मऊ। अप्रैल का महीना पपीता लगाने के लिए काफी उपयुक्त और मुफीद होता है। जनपद मऊ के किसान अपने खेतों में अप्रैल महीने में पपीता लगाने के लिए इस समय से ही खेतों की तैयारी शुरू कर दें। अप्रैल माह के दौरान लगाए गए पपीते के पेड़ों में विषाणु जनित एवं फफूद जनित बीमारियों के लगने का खतरा काफी कम रहता है। कृषि विज्ञान केंद्र, पिखली, मऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. एल. सी. वर्मा ने बताया कि पपीता लगाने का यह उपयुक्त समय है इस समय में जनपद के किसान अपने खेतों में वैज्ञानिक विधि से पपीते की खेती कर बेहतर उत्पादन और लाभ दोनों प्राप्त कर सकते हैं। केंद्र के उद्यान वैज्ञानिक डा. जितेंद्र कुशवाहा ने बताया कि पपीते की कुल खेती 25 हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है। इस खेती में कुल 150 टन पपीते का उत्पादन होता है। जनपद में पपीता की उत्पादकता 24.7 टन प्रति हेक्टेयर है। राष्ट्रीय स्तर पर पपीते की खेती की बात करें तो पपीते की कुल खेती 138 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है इससे कुल 5979 हजार टन पपीते का उत्पादन प्राप्त होता है। पपीता की राष्ट्रीय उत्पादकता 43.30 टन प्रति हेक्टेयर है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में पपीता की उत्पादकता राष्ट्रीय उत्पादकता से काफी कम है। उत्तर प्रदेश में उत्पादकता कम होने का प्रमुख कारण इसमें लगने वाली विभिन्न तरह की बीमारियां हैं। खासकर पपीते में लगने वाली बीमारी पपाया रिंग स्पाट वायरस रोग तो पपीता के लिए काफी विनाशकारी रोग है। उत्तर प्रदेश के किसान अगर वैज्ञानिकों के द्वारा समय-समय पर बताए गए सुझाव को अपनाकर पपीते की खेती करते हैं तो वे निश्चित रूप से पपीते को खेती से उच्च स्तरीय उत्पादन और मुनाफा दोनों प्राप्त कर सकते हैं। *पपीता की बागवानी लगाने से पूर्व खेत को कैसे तैयार करें किसान* उद्यान वैज्ञनिक ने बताया कि पपीता लगाने के लिए किसान सबसे पहले ऐसे खेत का चयन करें जिसमें बरसात का पानी बिल्कुल भी नहीं लगता हो। खेत का चयन करने के बाद किसान रोटावेटर या कल्टीवेटर से खेत की जुताई 2- 3 बार करके उसे खरपतवारओं से मुक्त कर दें। इसके बाद खेत में पर्याप्त मात्रा में सभी तरह के उर्वरकों को मिलाने के बाद एक बार पुनः उसकी जुताई कर दें। इसके बाद 18×18 मीटर की दूरी पर 60× 60× 60 सेंटीमीटर के आकार का गड्ढा तैयार कर उसमें पपीता लगा दें। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि किसान पपीता से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए पपीता लगाने के 15 दिन पूर्व ही अपने खेतों को तैयार कर उसमें गड्ढा खोदने का कार्य पूरा करें तथा गड्ढे में 15 दिन धूप और हवा लगने दें। बरसात शुरू होने के पूर्व प्रति गड्ढे के ऊपर की भुरभुरी मिट्टी में 20 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद, एक किलोग्राम नीम की खली तथा 1 किलोग्राम हड्डी का चूर्ण तथा 5 से 10 ग्राम कार्बोफ्यूरान मिलाकर गड्ढे को अच्छी तरह भर दें। इसके बाद नर्सरी के पपीते के पौधों की खरीदारी कर उसमें पी पपीता लगा दें। गड्ढे में लगाए गए पौधे की ऊंचाई 15 से 20 सेंटीमीटर होना बेहतर रहेगा। *पपीते की खेती के लिए भूमि एवं जलवायु* मृदा वैज्ञानिक डा. चंदन सिंह ने बताया कि पपीते की सफल बागवानी के लिए गहरी और उपजाऊ, सामान्य पीएच मान वाली बलुई दोमट मिट्टी अत्यधिक उपयुक्त मानी जाती है। इसकी बागवानी के लिए भूमि में जल निकास का होना बहुत जरूरी होता है क्योंकि जलजमाव पपीते के पौधों को सुखा देता है। बीज प्रौद्योगिकी वैज्ञानिक डा. हिमांशु राय ने कहा कि पपीता एक उष्णकटिबंधीय फल है। प्रदेश की खेती उत्तर प्रदेश की समशीतोष्ण जलवा में भी सफलतापूर्वक की जाती है। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि ऐसे तो पपीता की प्रजातियां में अलका प्रभात, आकाश सूर्या, रेड लेडी, वाशिंगटन, कुर्ग हनीड्यू, पूसा जायंट, पूसा डिलीशियस, पूसा ड्वार्फ आदि सभी प्रजातियां काफी अच्छी होती हैं। लेकिन इनमें से रेड लेडी पपीता की सबसे प्रचलित प्रजाति है।