बबुरी से सटे डवंक गांव में जमीन से प्रकट हुआ है भगवान शिव का यह स्वरूप
तारकेश्वर सिंह
चंदौली।वैसे तो शिव कण कण में विराजमानहैं ।संसार का कोई ऐसा अंश नहीं है जो शिवत्व से बाहर हो। फिर भी मनुष्य अपने स्वभाव के कारण उनके स्थापना के लिए एक मंदिर का निर्माण कर देता है ताकि वह अपने आराध्य की आराधना के लिए एक निश्चित पूजा स्थल का प्रयोग कर सके ।पर कभी कभी भगवान जब प्रतिमा के रूप में स्वयं भूमि से प्रस्फुटित होते हैं तो लोगों की आस्था भगवान में कई गुना बढ़ जाती है । सावन के इस तीसरे सोमवार को हम मिर्जापुर जनपद के जमालपुर विकास खण्ड के डवक गाँव स्थित प्रकटेश्वर महादेव मंदिर का दर्शन कराते हैं। जहां आज से कुछ दशक पहले मंदिर जैसा कुछ भी नही था । चारों तरफ बस खेत ही खेत थे । इन खेतों के बीच डवक गाँव के एक बड़े कास्तकार महेन्द्र सिंह का भी खेत था,जहाँ बड़ी अच्छी पैदावार होती थी । उन दिनों फसल बोने के लिए खेतों की जुताई चल रही थी । दो बैल हल का भार अपने गर्दन पर लिए आगे बढ रहे थे । चलते चलते एकाएक हल का फाल मिट्टी में धंसता है और बैलों के पैर जहाँ के तहाँ रूक जाते हैं । किसान बैलों के पीठ पर हाथ में लिए पतले डंडे से वार भी करता है, पीठ पर वार होते ही बैल पूरा बल लगा कर आगे बढने का प्रयास करते हैं लेकिन सफल नहीं होते । तब हल जोत रहा किसान हल के फंसे फाल को निकालने के लिए जैसे ही फाल के पास की मिट्टी हटाता है । उसे पत्थर का तराशा हुआ गोल पिण्ड दिखाई देता है । जिसमे फाल फस कर हल को हिलने भी नही दे रहा था। जिज्ञासा वश किसान पिण्ड के पास से मिट्टी हटाने लगता है । जैसे जैसे मिट्टी हटती जाती पिण्ड की लम्बाई मिलती जाती । देखते ही देखते खेत मे शिव लिंग का आधा हिस्सा दिखने लगा जिसपर मिट्टी निकाल रहा किसान दिव्य शिव लिंग का दर्शन पाकर थर थर कापने लगा । उसने आसपास काम कर रहे किसानों को शोर मचा कर अपने पास बुला लिया । जिस जिस ने देखा सब आश्चर्य चकित रह गये , हिला कर देखने का प्रयास किया लेकिन शिवलिंग टस से मस नही हुआ । फिर तय हुआ कि इसके जड़ तक खोद कर देखा जाए ये कैसा पत्थर है।किसानो ने कई फावड़े लाकर मिट्टी खोदनी शुरू कर दी । महेन्द्र सिंह के खेत में गढ़े हुए विशेष आकार के पत्थर मिलने की सूचना थोड़ी ही देर में पूरे गांव में पहुंच गयी । देखते ही देखते भारी भीड़ उस खेत में जमा होने लगी । थोड़े से मेहनत के बाद ही किसानों की आख के सामने एक विशालकाय शिवलिंग अवतरित हो चुका था । अपनी आखों के सामने भगवान शिव के विशाल दिव्य शिवलिंग को देखते ही ग्रामीणों मे आस्था उमड़ पड़ी, लोगो ने पानी लाकर सबसे पहले शिवलिंग की साफ सफाई की । साफ होने के बाद तो जो भी भगवान की मूर्ति को देखता , देखता ही रह जाता । लोगो ने फूल माले से शिवलिंग को लाद दिया । खुदाई के दौरान शिवलिंग के साथ तमाम छोटी बड़ी खण्डित मूर्तियाँ भी मिली थी जिन्हें कौतूहल वश ग्रामीण साफ कर अपने अपने तर्क से पहचानने में लगे थे । धार्मिक विचार धारा के व्यक्ति महेन्द्र सिंह अपने खेत में भगवान का अवतरण देख अभिभूत थे , उन्होंने उस जमीन पर मंदिर बनाने के लिए तुरंत घोषणा कर दी ।इस खुदाई के दौरान एक विशाल कुण्ड भी मिला था, जिसका कोई ओर छोर नही था । कुण्ड के पास ही एक मोटी दिवार भी थी । गाव के लोगों को यह महसूस हो चुका था कि उक्त स्थान पर कालान्तर में बहुत ही बड़ा शिव मंदिर रहा होगा।इस लिए उन्होंने खुदाई रोक दी।धीरे धीरे भगवान के मंदिर के लिए गांव वालों ने स्वेच्छा से दान इकट्ठा कर एक भव्य शिवालय का निर्माण करा दिया और भगवान शिव के इस स्वरूप को नाम दिया “प्रकटेश्वर महादेव” । लोग बताते हैं इस मंदिर में ध्यानमग्न हो कर बैठने पर शिवलिंग में भगवान के अनेेक स्वरूप के दर्शन भी मिलते थे । अनेक लोगों ने इसका अनुभव किया है । तब से लेकर आज तक उस मंदिर मे श्रद्धालुओ का ताता लगा रहता है । हर वर्ष महाशिवरात्रि के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं का विशाल रेला उमड़ता है। भीड़ इतनी होती है कि भगवान का ठीक से दर्शन भी सुलभ नही हो पाता । कुछ ऐसी ही स्थिति श्रावण मास में भी होती है। लोग सुबह से ही भगवान शिव के अभिषेक के लिए मंदिर पहुचने लगते हैं। लोगो की मान्यता है कि इस मंदिर में सच्ची श्रद्धा से मांगी गयी मुराद जरूर पूरी होती है । यह मंदिर बबुरी बस स्टैंड के पास ही है । यहां बस स्टैंड से पैदल या वाहन द्वारा पहुंचा जा सकता है।