ग़ाज़ीपुर, उचाडीह | हे परिक्षित इंद्रियों को निग्रहित करना बड़ी कठिन है,आप आंख बन्द कर के बैठो और कोई पीछे खड़ा हो, पता चल जाता है,कोई पीछे खड़ा है,इंद्रियों के अपेक्षा मन सुक्ष्म है,जैसे गीता में अर्जुन ने भगवान से पूछा।
चंचलम ही मन: कृष्णम, भगवान ने एक वाक्य में कह दिया, अभ्यासे न तू कौंतेय वैरागे न च गृहयते।।
अब क्या करे इंद्रियों को निग्रह किया नही जा सकता, मन को निग्रह किया नही जा सकता, चित को समाहित किया नही जा सकता,बुद्धि भगवान में लग नही रही है, अब जीव करे क्या,
ब्रम्हा जी कह रहे है ,बस भगवान को हृदय में बिठालो, भगवान बैठेंगे कैसे जैसे संसारियो के साथ रहते संसार मन में बैठ गया वैसे ही , भगवान एवम भक्तो का साथ करते करते मन में भगवान बैठ जायेंगे, भगवान श्रवण मार्ग से हृदय में बैठते है,ब्रम्हा कहते है मैने भगवान के नाम,रूप,लीला धाम का आश्रय लिया और भगवान हृदय में बैठ गए,भगवान की माया से बचना है तो भगवान के चरणो मे चले जाओ।
माम एव ये प्रपद्यंते माया मेताम तरंतीते।।
, कृष्णानंद राय विजय बहादुर राय अरुण राय अजय राय सनत कुमार राय सुमंत पांडे सुभाष पांडे सत्यनारायण राय दिनेश राय प्रेम प्रकाश राय रजनीश राय वीरेंद्र राय मार्कंडेय राय ,रोजगार सेवक,
अभय लाल ,,प्रधान,शिवानंद यादव
घर भरण वर्मा इत्यादि